‘अपनी भाषा में ही अपना भविष्य ' खोजने वाले चीन और जापान, जिनकी भाषायें ढाई हजार चिन्हों की चित्रात्मक लिपि वाली हैं और उसी में उन्होंने बीसवीं शताब्दी का सारा ज्ञान-विज्ञान विकसित किया और आज वे सभी क्षेत्रों में लगभग निर्विवाद रूप से अपराजेय हैं।
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जिन सज्जन ने चीनियों को देवनागरी अपनाने की सलाह दी थी उनको संभवत: ये मालूम नहीं कि आज भारत समेत कई दुनिया में चीनी या मंदारिन के लिए क्रेज बढ़ रहा है, गोकि वो अपनी चित्रात्मक लिपि की वजह से एक मुश्किल भाषा है।
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अपनी भाषा में ही अपना भविष्य ' खोजने वाले चीन और जापान, जिनकी भाषायें ढाई हजार चिन्हों की चित्रात्मक लिपि वाली हैं और उसी में उन्होंने बीसवीं शताब्दी का सारा ज्ञान-विज्ञान विकसित कि या और आज वे सभी क्षेत्रों में लगभग निर्विवाद रूप से अपराजेय हैं।
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जब चित्रात्मक लिपि वाली जापानी और चीनी भाषाओं में बीसवीं शताब्दी का सारा, न केवल ज्ञान-विज्ञान आ सकता है, बल्कि वे स्वयं को विश्व के श्रेष्ठतम और सफल राष्ट्र की तरह दुनिया के सामने गर्व से खड़ा कर सकते हों, तब नागरी लिपि जैसी दुनिया की सर्वाधिक वैज्ञानिक और समर्थ लिपि को हमेशा-हमेशा के लिए विदा करना कौन-से विवेक का प्रमाणीकरण होगा।
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जब चित्रात्मक लिपि वाली जापानी और चीनी भाषाओं में बीसवीं शताब्दी का सारा, न केवल ज्ञान-विज्ञान आ सकता है, बल्कि वे स्वयं को विश्व के श्रेष्ठतम और सफल राष्ट्र की तरह दुनिया के सामने गर्व से खड़ा कर सकते हों, तब नागरी लिपि जैसी दुनिया की सर्वाधिक वैज्ञानिक और समर्थ लिपि को हमेशा-हमेशा के लिए विदा करना कौन-से विवेक का प्रमाणीकरण होगा।